May 1, 2025
केंद्र सरकार ने सुपर कैबिंनेट की बैठक में कई अहम फैसले किए है। जिसमें जातिगत जनगणना की चर्चा सबसे ज्यादा है। यह जनगणना इसी साल सितंबर में होने वाली मूल जनगणना के साथ ही कराई जाएगी। जिसे पूरा होने में करीबन 2 साल का समय लगने का अनुमान है। जिसकी जानकारी कैबिनेट मीटिंग के बाद मंत्री अश्विनी वैष्णव ने दी। इस फैसले की घोषणा होते ही विपक्ष में खलबली मच गई है। विपक्ष इस का क्रेडिट लेना चाहता है। उसका कहना है कि विपक्ष के दबाव के कारण मोदी कैबिनेट ने यह फैसला लिया है। लेकिन राजनीति ने जानकार इस जातिगत जनगणना को पीएम मोदी का मास्टर स्ट्रोक मान रहें हैं। जिसने विपक्ष को चारों खाने चित्त कर दिया है।
इस निर्णय से भाजपा को होंगे चार राजनीतिक फायदें
जातिगत जनगणना के फैसले से भारतीय जनता पार्टी को कई राजनीतिक फायदे होंगे। जानकार बताते है कि इस मुद्दे पर भापजा ने जो मास्टर स्ट्रोक खेला है। उससे बिहार के साथ यूपी के चुनाव का भी रास्ता कहीं ना कहीं साफ होता नजर आ रहा है। साथ ही एक पंत दो काज की रणनीति अपनाते हुए भाजपा ने इस निर्णय से विपक्षियों से उनका मुद्दा भी छीन लिया और महागठबंधन में दरार भी फैदा कर दी।
बिहार चुनाव में भाजपा को होगा सीधा फायदा
जातिगत जनगणना के फैसले से भाजपा को सीधा फायदा इस साल होने वाले बिहार चुनाव में होता नजर आ रहा है। बिहार में इस साल चुनाव है और बिहार ही जातिगत जनगणना करने वाला भारत का पहला राज्य है। ऐसे में भाजपा का यह निर्णय जहां एक ओर बिहार के लोगों में सरकार के प्रति विश्वास पैदा करने का काम करेगा। वहीं बिहार के सीएम नीतीश कुमार को भाजपा से जोड़े रखने में मदद करेगा। क्योंकि पिछले बिहार चुनाव में इसी मुद्दे पर नीतीश कुमार ने महागठबंधन का गठन किया था।
यूपी के विधानसभा चुनाव में अल्पसंख्यकों को साधने की कोशिश
उत्तर प्रदेश में 2027 में विधानसभा चुनाव होने है। ऐसे में भाजपा किसी भी कीमत पर 2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजे जैसा परिणाम यूपी में नहीं लाना चाहती है। 24 के आम चुनाव में यूपी के जो नतीजे आए उसने भाजपा को बड़ा झटका दिया था। जिसके बाद यूपी के अल्पसंख्यकों को साधने के लिए भाजपा ने यह पेंच खेला है। क्योंकि जातिगत जनगणना के नतीजों से फायदा अल्पसंख्यकों को होना तय है। जानकारों के मुताबिक भाजपा बस पिछड़े वर्ग के उन लोगों को विश्वास दिलाना चाहती है कि भारतीय जनता पार्टी आरक्षण के खिलाफ नहीं है। ताकि उनका वोट जो खिसक गया था वह भाजपा को फिर से मिले।
भाजपा ने विपक्ष से छीना उसका सबसे बड़ा मुद्दा
कांग्रेस, सपा, बसपा समेत अन्य विपक्षी पार्टियां लंबे समय से जातिगत जनगणना कराने की मांग कर रही थी। और इस मुद्दे को जनता के बीच ले जाकर भाजपा को घेराना चाहती थी। लेकिन भाजपा ने उनसे यह हक भी छीन लिया। नेता प्रतिपक्ष राहुंल गांधी ने तो यह तक कह दिया था कि जब वह सत्ता में आएंगे। तब जातिगत जनगणना जरूर कराएंगे । वो अलग बात है कि स्थिर एनडीए की मोहन सरकार 2011 में जातिगत जनगणना नहीं करा पाई। वहीं आरजेडी के तेजस्वी यादव भी इस मुद्दे पर अपनी राजनीति कर रहे थे। अखिलेश यादव भी कई बार इस मुद्दे का समर्थन करते नजर आए है।
भापजा के फैसले से विपक्ष में शुरू हुई टकरार

भाजपा के जातिगत जनगणना का फैसला लेते ही विपक्षी पार्टियों में इसका क्रेडिट लेने की होड़ मच गई है। लालू यादव इसे अपनी 30 साल पुरानी जीत बता रहे है। तो कांग्रेस इस अपने दबाव का परिणाम मान रहीं है। जिसके बाद से ही विपक्षी पार्टियों की एकता संकट में नजर आ रही है। कांग्रेस ने जहां केंद्र सरकार से अपील किया है कि वह जातिगत जनगणना के लिए तेलंगाना मॉडल को आदर्श बनाए। कांग्रेस का कहना है कि यह आदर्श मॉडल है। जिसमें जनता की राय लेकर काम किया गया है। पहले ही राहुल बिहार के जातिगत जनगणना को फर्जी बात चुके है।
तेजस्वी यादव जनगणना को बता रहे लालू की जीत
वहीं लालू यादव के बेट तेजस्वी यादव इसे लालू यादव की जीत बता रहें हैं। और जनगणना के लिए बिहार मॉडल अपनाने की बात कह रहे हैं। तेजस्वी का कहना है कि लालू यादव ने 30 साल पहले ही जातिगत जनगणना की मांग की थी। इसे लेकर लालू यादव ने प्रधानमंत्री से मुलाकात भी की थी।
आरएसएस ने जातिगत जनगणना को राजनीति हथियार न बनाने की दी नसीहत
जातिगत जनगणना के बाद आरएसएस प्रमुख ने कहा कि जातिगत जनगणना पिछड़े वर्ग के हित में होना चाहिए। इसे राजनीतिक हथियार नहीं बनाना चाहिए। आरएसएस शुरू से ही जातिगत विभाजन के खिलाफ रही है । लेकिन पिछले 11 सालों में पहली बार ऐसा हुआ कि कोई संघ प्रमुख प्रधानमंत्री आवास गया हो। लेकिन 29 अप्रैल को संघ प्रमुख ने पीएम आवास पर उनसे मुलाकात की थी। जिसके एक दिन बाद ही यह निर्णय लिया गया। जो की इस फैसले में संघ की शांत सहमति दिखाता है।